जिंदा रहने के कारोबार के सिलसिलेंमे आज पुराने शहर चले गये| ये वो करते करते मिर्झा गालिब चौक पहुंचे| चार संकरी गलीयों के बीच खडा था, मगन चूडीवाला, करीम नाई और जैनब मंजील से सठा हुआ.
वहींसे गालीब जनाब नें फर्माया
बाजीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज तमाशा मेरे आगे
बतौर परेशान तमाशाई मिर्झाजी को दाद दी और बस स्कूटर को कीक देने लगे|
वहींसे गालीब जनाब नें फर्माया
बाजीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज तमाशा मेरे आगे
बतौर परेशान तमाशाई मिर्झाजी को दाद दी और बस स्कूटर को कीक देने लगे|
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